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मसीही गीत-भजन ऑनलाइन

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Religion v/s Spirituality – The truth of False Religion

God has blessed and encouraged me thoroughly by the ‘Word of the Week’ by Zac Poonen. I am publishing it as is here with due credit to him. Read and be blessed. WORD FOR THE WEEK 21 February 2010
Christian Fellowship Church, Bangalore, India www.cfcindia.com.

The Essence of Babylon – From Man, Through Man And To Man

Zac Poonen

In Genesis 11:4 we read that the people of the world decided to build a tower. They said to each other, “Come, let us build for ourselves a city and a tower whose top would reach to heaven.” They wanted their tower to be the gate of God (Babel). Human effort to reach God is a major constituent of false religion. False religion is always a religion of works – and not one of faith and dependence on God. Continue Reading

The perfect mistake

I was amazed why God did not allow me to change the ‘Word of the week’ for two weeks. I intended to change, yet, when I asked for it, He did not provide His Word. Finally I chose to keep this page as is – thinking probably God has to make that message available to someone who really needed it.

Finally, He touched my heart with one very inspiring story from Email Ministry – ‘The perfect mistake’. I have been thoroughly blessed, so publishing it as is, with all due credit to the Email Ministry team.

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How To Read The Bible For Better Understanding

I have written few books and I am sure I am the best person who can explain every single word and sentence that I have written in my books. Bible is written by the Holy Spirit of God through human hands who were inspired to write what God wanted, who can be a better teacher than God himself to teach us what he wrote and what he meant.

All Scripture is God-breathed and is useful for teaching, rebuking, correcting and training in righteousness, so that the servant of God[a] may be thoroughly equipped for every good work.

– 2 Timothy 3:16-17

The Bible is not a mere book (or collection of spiritual books) but its a living word – the Word of God, its own best teacher. The Bible however is not arranged like an encyclopedia. You cannot go to chapter 1 and read everything about God and go to chapter 2 to read everything about Jesus, etc. Remember when reading the Bible the verses and chapter breaks are placed in the scriptures by man. It is better to read by paragraph, these too are man-made but they do conform better to the original language than verses. Some ground rules need to be set up first: Continue Reading

Satyamev Jayate
सत्यमेव जयते

सत्यमेव जयते – अर्थात सत्य की सदा जीत होती है। हम इस बात पर विश्वास करते हैं और इसी कारण बहुत से त्योंहार मनाते हैं। कुछ त्योंहारों में हम परस्पर असत्य पर सत्य की विजय को प्रतिबिंबित करते हैं और इसीलिये उत्सव में शामिल होते हैं। हम आनंद मनाते हैं और उससे जुड़े कई तरह के रीतिरिवाज भी पूरे करते हैं। सच तो यह है कि हम चाहते तो हैं कि सत्य की ही अंत में जीत होनी चाहिये, परंतु सत्य से ही अनजान हैं।

मेरा मानना है कि सामान्यतया मनुष्य की रुचि सत्य में ही होती है। झूठ को कोई सुनना पसंद नहीं करता। हाँ, यह बात और है कि यदाकदा स्वार्थवश हम झूठ बोल देते हैं। उदाहरणतया, जो लोग ज्योतिषियों के पास जाते हैं क्या वे अपने भविष्य का सत्य जानना नहीं चाहते हैं। कौन उनसे झूठ सुनने के लिये जाता है? अपने बच्चे से कोई झूठ सुनना पसंद नहीं करता; गलती भी हो जाये और बच्चा सच बोले तो संभव है कि मार से बच जाये परंतु झूठ बोले और पता चल जाये कि झूठ है तो जो हाथ में आये उससे पिटाई करने में माँ-बाप पीछे नहीं हटते। पुलिस वाले सच उगलवाने के लिये क्या क्या नहीं करते? यदि आपको पता चल जाये की सामने वाले झूठ बोल रहा है तो क्या आपकी रूचि उसकी बात में रहती है? कई लोग कहते हैं कि किसी की भलाई के लिये बोला गया झूठ ‘झूठ’ नहीं होता। यह सुनने में तो अच्छा है लेकिन अपने आप में असत्य बात है। कुल मिलाकर हम झूठ पसंद नहीं करते, परंतु जो शाश्वत जीवन का सत्य है उससे अनजान बैठे रहते हैं, उसे खोजते नहीं, और मिथ्या संसार में मन लगाये रहते हैं।

सत्य है क्या ?

हमें विचार करने की आवश्यकता है कि क्या सत्य वो है जो हम सुनना चाहते हैं, या वो है जो हमने बचपन से सीखा है। क्या विज्ञान ही सत्य है या फिर सत्य वो है जो मनुष्य के तत्वज्ञान से सिखाया गया है और या फिर वो जिसकी खोज में ऋषि-मुनि सदियों से जंगलों में जीवन बिताते रहे हैं और फिर भी जब नहीं पाया तो ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगे कि हे ईश्वर हमें असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश तथा मृत्यु से जीवन की ओर ले चल। संसार की बातें तो एक दिन खत्म हो जायेंगी लेकिन कभी खत्म ना होने वाला सत्य क्या है। कुछ शब्दों में, ईश्वर से जो मैंने सीखा है, मैं आपको वह सच्चाई बताने का प्रयास करता हूँ। Continue Reading

Apka mulya chukaya gaya hai
आपका मूल्य चुकाया गया है

“क्योंकि पाप का मूल्य तो बस मृत्यु ही है जबकि हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनंत जीवन परमेश्वर का वरदान है।”

पुरातन ग्रंथ और आध्यात्मिक धर्मशास्त्र कहते हैं कि पूरी मानव जाति पाप के अंधकार में फंस कर अपने सृष्टिकर्ता के सान्निध्य से दूर हो गई है। हर प्रकार के पाप की क्षमा के लिये शुद्ध तथा निष्कलंक रक्त का बहना ज़रूरी है, क्योंकि लहू में जीवन होता है। कोई पशु पक्षी आदि का लहू नहीं परंतु परम पवित्र परमात्मा (सृष्टिकर्ता परमेश्वर) के लहू बहाने से ही सर्व मानवजाति का पाप क्षमा हो सकता है। Continue Reading

Sabka Malik Ek Hai
सबका मालिक एक है

क्या सच में सब का मालिक एक है?

अगर ऐसा है तो फिर समाज में इतना बैरभाव क्यों? क्या हम सच में मानते हैं कि सबका मालिक एक है या बस कहने के लिये कह देते हैं? दुनिया में बहुत से धर्म हैं। उन सबके रीतिरिवाज अलग अलग हैं और वे सभी इस बात को तूल देते हैं कि उनका ही रास्ता ठीक है। तो क्या बाकी रास्ते गलत हैं? क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं? “हमारे यहाँ तो ऐसा होता है” या “हम तो यह मानते हैं”, यह बात हर जगह धार्मिक विषय पर हो रही बातचीत में सुनाई देती रहती है। क्या ईश्वर भी ऐसे ही बँटा हुआ है?

बहुत से समाजसेवक, गुरु और संत/पैगम्बर इस बात को बताने की कोशिश करते रहे हैं कि समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिये, हमें सब धर्मों के लोगों को एक ही दृष्टि से देखना चाहिये, फिर भी भेदभाव भी है और ऊँच-नीच भी। ईश्वर इंसान में भेद नहीं करता और सिखाता है कि सब आपस में प्रेम करें और ईश्वर से भी प्रेम करें, तौभी ऐसा होता नहीं है क्योंकि मनुष्य ईश्वर की नहीं सुनता बल्कि अपने ही तौरतरीकों में खोया रहता है। हरेक धर्म के अपने अपने शास्त्र हैं और अपने अपने तौर-तरीके। सभी ईश्वर को पाना चाहते हैं परंतु फिर भी उसमें अंतर मानते हैं। क्या सच में हिंदू को रचने वाला और ईसाई को रचने वाला ईश्वर अलग अलग है। अगर नहीं, तो फिर हम ईश्वर को बाँटकर क्यों देखते हैं? कुछ धर्मावलंबी अधिक उदार है इसलिये वे कह देते हैं कि ईश्वर एक है परंतु उसके रूप अलग अलग हैं। पर यदि ऐसा है तो अलग अलग धर्मों में उसकी शिक्षायें और उसका स्वरूप हमें एकदम भिन्न क्यों नज़र आता है? विचार करें। Continue Reading