सत्यमेव जयते – अर्थात सत्य की सदा जीत होती है। हम इस बात पर विश्वास करते हैं और इसी कारण बहुत से त्योंहार मनाते हैं। कुछ त्योंहारों में हम परस्पर असत्य पर सत्य की विजय को प्रतिबिंबित करते हैं और इसीलिये उत्सव में शामिल होते हैं। हम आनंद मनाते हैं और उससे जुड़े कई तरह के रीतिरिवाज भी पूरे करते हैं। सच तो यह है कि हम चाहते तो हैं कि सत्य की ही अंत में जीत होनी चाहिये, परंतु सत्य से ही अनजान हैं।
मेरा मानना है कि सामान्यतया मनुष्य की रुचि सत्य में ही होती है। झूठ को कोई सुनना पसंद नहीं करता। हाँ, यह बात और है कि यदाकदा स्वार्थवश हम झूठ बोल देते हैं। उदाहरणतया, जो लोग ज्योतिषियों के पास जाते हैं क्या वे अपने भविष्य का सत्य जानना नहीं चाहते हैं। कौन उनसे झूठ सुनने के लिये जाता है? अपने बच्चे से कोई झूठ सुनना पसंद नहीं करता; गलती भी हो जाये और बच्चा सच बोले तो संभव है कि मार से बच जाये परंतु झूठ बोले और पता चल जाये कि झूठ है तो जो हाथ में आये उससे पिटाई करने में माँ-बाप पीछे नहीं हटते। पुलिस वाले सच उगलवाने के लिये क्या क्या नहीं करते? यदि आपको पता चल जाये की सामने वाले झूठ बोल रहा है तो क्या आपकी रूचि उसकी बात में रहती है? कई लोग कहते हैं कि किसी की भलाई के लिये बोला गया झूठ ‘झूठ’ नहीं होता। यह सुनने में तो अच्छा है लेकिन अपने आप में असत्य बात है। कुल मिलाकर हम झूठ पसंद नहीं करते, परंतु जो शाश्वत जीवन का सत्य है उससे अनजान बैठे रहते हैं, उसे खोजते नहीं, और मिथ्या संसार में मन लगाये रहते हैं।
सत्य है क्या ?
हमें विचार करने की आवश्यकता है कि क्या सत्य वो है जो हम सुनना चाहते हैं, या वो है जो हमने बचपन से सीखा है। क्या विज्ञान ही सत्य है या फिर सत्य वो है जो मनुष्य के तत्वज्ञान से सिखाया गया है और या फिर वो जिसकी खोज में ऋषि-मुनि सदियों से जंगलों में जीवन बिताते रहे हैं और फिर भी जब नहीं पाया तो ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगे कि हे ईश्वर हमें असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश तथा मृत्यु से जीवन की ओर ले चल। संसार की बातें तो एक दिन खत्म हो जायेंगी लेकिन कभी खत्म ना होने वाला सत्य क्या है। कुछ शब्दों में, ईश्वर से जो मैंने सीखा है, मैं आपको वह सच्चाई बताने का प्रयास करता हूँ।
जन्म सत्य है
यदि संसार में हमने जन्म लिया है और हाड़-माँस का शरीर पाया है और सब हमें छू सकते हैं, देख सकते हैं तो फिर हम सचमुच में हैं और हमारा जन्म सत्य है। विज्ञान की परिभाषा से देखें तो जिसको शरीर की इंद्रियों से अनुभव किया जा सके, जाना जा सके वह निसंदेह एक वस्तु है। आध्यात्मिक रूप से देखें तो जिसके पास शरीर, प्राण तथा आत्मा है, वह एक जीवित मनुष्य है। जहाँ जानवर सिर्फ शरीर और प्राण से जीवित हैं, मनुष्य की सृष्टि शुरुआत में परमात्मा के पवित्र स्वरूप में हुई है। इसी कारण जानवर ईश्वर की न खोज करते हैं और न पूजा, परंतु इंसान ईश्वर की खोज करता है, और सच है कि वह ही ईश्वर से मिलन कर पाने में सक्षम है, जानवर नहीं। परंतु जन्म से ही पाप के वश में होकर उम्र के बढ़ने के साथ साथ मनुष्य अन्य अन्य तरह के पाप करने लगता है। खैर, तो हम मानते हैं कि हम जीवित हैं और हमारा जन्म एक सच्चाई है।
मृत्यु सत्य है
यदि इस संसार में जन्म लिया है तो शारीरिक मृत्यु भी एक सच्चाई है जिसको झुठलाया नहीं जा सकता। जो इस संसार में आया है, चाहे वह कोई गुरू हो, अवतार हो, मनुष्य हो, जानवर हो, दुष्ट हो या धर्मी, सभी एक समय मृत्यु को प्राप्त करते हैं। मृत्यु से न तो कोई राजा महाराजा बच सका है और न ही कोई दीन-दरिद्र। हम सभी को एक दिन इस सच्चाई का सामना करना है, सवाल यह है कि हम इसके लिये कितना तैयार हैं?
क्या मन में सवाल नहीं आता कि मरने के बाद क्या होगा? या फिर अपने अंतर्मन की आवाज़ को दबाकर हम अपने आपको इस दुनिया की भागदौड़ में ऐसा व्यस्त कर लेते हैं कि यह सोचने का समय ही नहीं है?
जीवन सत्य है
जैसे हमने देखा कि जन्म एक सत्य है, मृत्यु एक सत्य है, इसी प्रकार अपने जन्म और मृत्यु के बीच बिताया हुआ हमारा पापमय जीवन भी उतना ही बड़ा सत्य है।
कभी कभी हम सुनते हैं कि सब माया है। क्या यह बात आपको सच लगती है? क्या आपकी पत्नि या माँ सिर्फ माया है, सचमुच में नहीं है? सिर्फ माया होती तो वह केवल विचारों में होती, मृग-मारिचिका के समान सिर्फ प्रतीत होती कि है परंतु होती नहीं। जैसे हिरण रेगिस्तान में दूर गर्मी से उठती तपन को जल समझ कर भागता है पर वहाँ कुछ नहीं पाता वैसे ही यदि माँ या आपकी पत्नि सिर्फ माया होती तो भूख लगने पर आपको गरमागर्म खाना नहीं दे पाती, आपकी देखभाल नहीं कर पाती क्योंकि आपको प्रतीत तो होती कि वो विद्यमान है परंतु होती नहीं। माया तो इसे ही कहते हैं। आपकी पत्नि या प्रेमिका आपको किसी भी प्रकार का सुख न दे पाती। आप उसे छू न पाते। फिर क्या आपका वेतन या धन एक माया है, यदि माया होता तो आप उससे कुछ खरीद ना पाते परंतु इसके विपरीत जब आप पैसा देते हैं तो दुकानदार उसे देखकर, गिनकर उसके बदले में उतनी ही कीमत की चीज आपको दे देता है, फिर यह माया कैसे हुआ। क्या आपके बच्चे माया? अगर आपकी शिक्षा माया होती तो सारे संसार में एक ही गणित कैसे माना जाता और फिर 2 और 2 मिलकर 4 ही कैसे बनते? क्या विज्ञान माया है? अगर ऐसा होता तो संसार में चलने वाली मोटरगाड़ियाँ, हवाईजहाज, फैक्ट्रियाँ, श्रंगार-प्रसाधन, घड़ी, घर, इत्यादि अन्य-अन्य उत्पाद एक कल्पना मात्र होते न कि इस्तेमाल करने योग्य कोई वस्तु।
यह संसार और इसमें हमारा जीवन कोई माया नहीं परंतु सत्य है। यहाँ हम कैसा जीवन बिताते हैं यह एक दिन गिना जायेगा, वह न्याय का दिन भी सत्य है।
पाप और न्याय सत्य है
जी हाँ, पाप भी एक सत्य है। हमारे किये पाप कोई माया नहीं कि एक दिन सब मिट जायेगा और हम विलीन हो जायेंगे। हाँ, सांसारिक रूप से तो हमारा शरीर एक दिन प्राण छोड़ देगा, मिट्टी में मिल जायेगा, परंतु हमारी आत्मा नहीं मरेगी, वह न्याय के लिये न्यायी ईश्वर के सिंहासन के सम्मुख खड़ी होगी और जब पापों का न्याय होगा तब अगर दोषी पाई गई तो अनंतकाल के लिये दण्डित होगी और शुद्ध पाई गई तो शाश्वत जीवन पाकर ईश्वर धाम में निवास करेगी।
शतुरमुर्ग, शिकारी को आते देख अपना मुँह मिट्टी में छुपा लेता है और सोचता है कि कोई उसे अब देख नहीं सकता, परंतु सच्चाई यह है कि उसका भारी-भरकम शरीर दूर से ही दिखाई पड़ता है और शिकारी के लिये वह आसान शिकार बन सकता है। शतुरमुर्ग के समान, आने वाली सच्चाई से मुँह छुपा लेना निरी मूर्खता के सिवाय कुछ भी नहीं। भलाई इसमे है कि हम सत्य को समझे और परमसत्य को अपने जीवन में जयवंत और फलवंत होने दें।
यह सब सत्य तो इस जीवन का है। तो इससे ऊपर भी क्या कोई और सत्य है। जी हाँ, एक परम सत्य है जिसके बारे में मैं आपको बताता हूँ।
परमसत्य
सृष्टिकर्ता ईश्वर परमसत्य है।
सत्य का गुण होता है कि वह कभी टलता नहीं, उसकी कोई समय सीमा नहीं होती और वह कभी समाप्त नहीं होता। परम ईश्वर वह परम सत्य है जो समय की सीमा से परे है।सत्य का गुण होता है कि वह कभी टलता नहीं, उसकी कोई समय सीमा नहीं होती और वह कभी समाप्त नहीं होता। परम ईश्वर वह परम सत्य है जो समय की सीमा से परे है। वह आदि काल से अनंत काल का परमेश्वर है। उसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता, उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता, उसे टाला नहीं जा सकता, उससे छुपा नहीं जा सकता और उसे छिपाया भी नहीं जा सकता। हम ईश्वर को मानवीय आँखों से देख तो नहीं पाते परंतु सारी सृष्टि उसकी महिमा का बखान करती है। यह कहकर टाल देना कि ईश्वर, नर्क और न्याय आदि को किसने देखा है, नासमझी होगी, जब कि बच्चे के जन्म में, बीज से वृक्ष बनने में, समुद्र की गहराई और पहाड़ों की ऊचाई में, प्रकृति के नियमों में, विज्ञान की परिकल्पनाओं व सिद्धान्तों में और दैनिक जीवन में हमें सर्वत्र एक सर्वज्ञानी ईश्वर की बुद्धिमानी और कार्यकुशलता प्रत्यक्ष रूप से बिना कोई जाँच-पड़ताल किये प्रमाणित रूप से देखने को मिलती है।
उस सृष्टिकर्ता के अलावा इस जग में जितनी भी वस्तुएं, प्रधानतायें, शक्तियाँ अस्तित्व रखती हैं, वे सब सृष्टि हैं और उस परम-ईश्वर के अधीन हैं। अपनी कल्पना तथा ईश्वर को पाने की चाह में हम कई बार उन कामों को करने लगते हैं जो कि उस सच्चे ईश्वर को नहीं भाती यहाँ तक कि हमारे अंधश्रद्धा में किये गये कई कामों से परम-ईश्वर (परमेश्वर) घृणा करता है। जैसे, उस अद्वैत और असीमित परमेश्वर की तुलना किसी पेड़ या जानवर से करना ठीक होगा – क्या ईश्वर को हक नहीं कि वह हमारी कल्पना से बनी मूरत को ईश्वर कहने पर हमसे रुष्ठ हो, हमारी मूर्तिपूजा से घृणा करे। जीवित इंसान की तस्वीर पर हम हार नहीं चढ़ाते पर ईश्वर की प्रतिमा या फोटो पर चढ़ा देते हैं – क्या ईश्वर जीवित नहीं। हम बहुत बार अपने अनुभव को ही सत्य मानने लगते हैं, या फिर बहुत बार उनके अनुभव को जिन्हें हम गुरू अथवा अपना धार्मिक अगुवा मान लेते हैं। हम प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों में सत्य को खोजते हैं और फिर उसे ही सत्य मान लेते हैं।
यह बात तो अच्छी है कि हम सत्य की खोज करें परंतु यह ठीक नहीं की सत्य की प्राप्ति से पहले ही हम अपनी खोज से संतुष्ट होकर बैठ जायें। मान लीजिये कि मैं आपको एक खेत दूँ और बोलूँ की इसमें जितनी भी फसल है वो सब आपकी है, तो ज़रूर आप फसल के पकने का इंतज़ार करेंगे ताकि उससे मिलने वाली लाखों की आमदनी को पा सकें। परंतु यदि मैंने आपसे यह भी कहा कि इसी खेत में कहीं एक दुर्लभ हीरा भी दबा है जिसकी कीमत करोड़ों में है, आप उसे तुरंत खोज लें अन्यथा कोई और उसे ढूंढ लेगा। मैं सोचता हूँ की आप लाखों की फसल से होने वाली आमदनी की परवाह नहीं करेंगे और ज़रूर ही बिना इंतज़ार किये खेत को खोद डालेंगे ताकि उस बहुमूल्य हीरे को प्राप्त कर लें। परम-सत्य ऐसे बेशकीमती हीरे से भी ज़्यादा मूल्यवान है, असल में ईश्वर को पा लेना अमूल्य है, जिसकी कीमत को आंका नहीं जा सकता।
परंतु आप हीरे को खोजना कहाँ से शुरू करेंगे ? मेरे विचार में जहाँ आप खड़े हैं उसी कोने से आप उसे खोजने लगेंगे और धीरे धीरे खेत के हरेक कोने को छान डालेंगे। आप ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक की वो हीरा आपके हाथ न लग जाये। ईश्वर की तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिये भी हमें ऐसा ही तत्पर रहना चाहिये और जैसा भी हो सके प्रयास तो करना चाहिये। आज ही शुरू करें क्योंकि हमें मालूम नहीं है कि हमारे पास कितना समय है। मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है जो अभी है और कब खत्म हो जाये पता नहीं। परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु यीशु मसीह ने कई वचनों में इस परम सत्य की बात की है। यूहन्ना 14:6 में उन्होंने कहा – मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ और बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता। यूहन्ना 8:32 में कहा – तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।
सच यह है कि हम सबने पाप किया है (रोमियों 3:23) और परमेश्वर के आत्मिक ज्ञान, पहचान, उसके सानिध्य और महिमा से वंचित हो गये हैं और पाप जो मृत्यु को अपने वेतन के रूप में कमाता है (रोमियो 6:23), हमने अपने लिये न्याय के दिन के लिये नाश कमा लिया है। ईश्वर हमें दोषी ठहराने को नहीं बल्कि हमें स्वतंत्र करने और जय दिलाने को तैयार है। जहाँ सभी अवतार पापियों का नाश करने आते हैं, परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु मसीह हम सभी पापियों के पाप माफ करने और हमें शाश्वत जीवन दिलाने के लिये इस संसार में मानव रूप में आ गये।
यूहन्ना 3:16-18 – क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परतुं अनंत जीवन पाये। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परंतु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाये। जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परंतु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वो दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उसने परमेश्वर के इकलौते पुत्र (प्रभु यीशु मसीह) के नाम पर विश्वास नहीं किया।
जो कोई उन पर विश्वास करके अपने पापों से पश्चाताप करके मन फिराता है, उनके प्राण क्रूस पर किये जीवन-बलिदान पर विश्वास करता और उन्हें अपने मुक्तिदाता के रूप में स्वीकार करता है उसकी मुक्ति हो जाती है। यीशु मसीह तीसरे दिन मौत पर जय पाकर मृतकों में से जी उठे थे -इस बात पर विश्वास करने वाला अनंत जीवन की आशा पाता है। जो प्रभु यीशु के सशरीर जीवित ही स्वर्ग में उठा लिये जाने की सत्य घटना और उनके फिर से आने कि भविष्यवाणी पर विश्वास करके समर्पण का जीवन बिताता है, वह पाप पर, नर्क पर और न्याय के दिन के लिये शुद्ध विवेक पाता है ताकि दोषी न ठहराया जाये बल्कि हमेशा के लिये स्वर्ग का अधिकारी बनता है।
प्रभु यीशु मसीह ही वह परमसत्य है जिसकी प्रतीक्षा सदियों से मानव करता आ रहा है। उनका हमारे पापों की कीमत चुकाने के लिये किया अपने प्राणों का बलिदान सत्य है। यीशु मसीह का मृतकों में से जी उठना भी सत्य है और उनका जीवित स्वर्ग में उठा लिया जाना भी। परमेश्वर का प्रेम और उसके पुत्र प्रभु यीशु मसीह द्वारा प्रकट किया गया हम पापियों का उद्धार भी सत्य है। जो उस पर विश्वास करता है वह परमेश्वर की संतान (यूहन्ना 1:12) बन जाता है और पाप से मुक्त होकर, हर अंधविश्वास से स्वतंत्र होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। हर एक ऐसा व्यक्ति ईश्वरीय शांति और आनंद का भागी होकर कह सकता है – सत्यमेव जयते। यह सिर्फ एक घोषणा नहीं लेकिन उसके जीवन का मूलमंत्र बन जाता है क्योंकि प्रभु यीशु ही परमसत्य हैं। आमीन।
आइये, प्रार्थना करें –
परमपिता परमेश्वर, मैं धन्यवाद करता हूँ की आपने मेरी आत्मिक आँखों को खोल दिया और सत्य से मेरी पहचान कराई। मैं अपने पापों से क्षमा मांगकर आपको अपना मुक्तिदाता मान लेता हूँ। आपने मेरे पापों की कीमत चुका दी है, और मेरे लिये अनंत जीवन का दान दिया है, मैं विश्वास से ग्रहण करता हूँ और अपना जीवन आपके हाथों में सौंपता हूँ, मेरी सहायता करें। प्रभु यीशु ही परमसत्य हैं – सत्यमेव जयते। प्रभु यीशु मसीह के नाम से आपका धन्यवाद और यह प्रार्थना करता हूँ। आमीन।
यदि आपने यह प्रार्थना की है तो आपके पाप क्षमा हो गये हैं। आप आनंद और शांति से भरा जीवन जी सकते हैं। आप नजदीकी मसीह सत्संग या बाइबल-आधारित कलीसिया में संगति करें, ईश्वर के पवित्रशास्त्र बाइबल को पढ़कर ईश्वर के प्रेम के बारे में और जानें और प्रतिदिन प्रार्थना कर जीवन बितायें। और जानकारी के लिये हमारी वैबसाइट पर आप संपर्क कर सकते हैं। प्रभु आपको आशीष दें।