Is Bible truly the Word of God

Is Bible truly the Word of real God or is it just a book written by human beings – this is a very interesting and thought provoking question; and probably one of the most important questions which anyone can ask the followers of Christ:Is Bible truly the Word of real God or is it just a book written by human beings – this is a very interesting and thought provoking question; and probably one of the most important questions which anyone can ask the followers of Christ.

What is so special, so unique about the Bible that we should consider it as the Word of God? Is Bible truly the Word of God, the authoritative instruction manual from creator God to guide us in right way and attitude of living our lives?What is so special, so unique about the Bible that we should consider it as the Word of God? Is Bible truly the Word of God, the authoritative instruction manual from creator God to guide us in right way and attitude of living our lives?

It is very easy to believe it by faith. Yes! But it is equally difficult to prove it unless we know the facts, especially when people demand reasoning for our faith.

I believe Bible is the true and only Word of God given to us to express the will, purpose and ways of God to the human race (irrespective of our caste, creed and religion). Whether you are born in a Hindu, Muslim, Catholic or a Christian family, you must know the following: Continue Reading

Satyamev Jayate
सत्यमेव जयते

सत्यमेव जयते – अर्थात सत्य की सदा जीत होती है। हम इस बात पर विश्वास करते हैं और इसी कारण बहुत से त्योंहार मनाते हैं। कुछ त्योंहारों में हम परस्पर असत्य पर सत्य की विजय को प्रतिबिंबित करते हैं और इसीलिये उत्सव में शामिल होते हैं। हम आनंद मनाते हैं और उससे जुड़े कई तरह के रीतिरिवाज भी पूरे करते हैं। सच तो यह है कि हम चाहते तो हैं कि सत्य की ही अंत में जीत होनी चाहिये, परंतु सत्य से ही अनजान हैं।

मेरा मानना है कि सामान्यतया मनुष्य की रुचि सत्य में ही होती है। झूठ को कोई सुनना पसंद नहीं करता। हाँ, यह बात और है कि यदाकदा स्वार्थवश हम झूठ बोल देते हैं। उदाहरणतया, जो लोग ज्योतिषियों के पास जाते हैं क्या वे अपने भविष्य का सत्य जानना नहीं चाहते हैं। कौन उनसे झूठ सुनने के लिये जाता है? अपने बच्चे से कोई झूठ सुनना पसंद नहीं करता; गलती भी हो जाये और बच्चा सच बोले तो संभव है कि मार से बच जाये परंतु झूठ बोले और पता चल जाये कि झूठ है तो जो हाथ में आये उससे पिटाई करने में माँ-बाप पीछे नहीं हटते। पुलिस वाले सच उगलवाने के लिये क्या क्या नहीं करते? यदि आपको पता चल जाये की सामने वाले झूठ बोल रहा है तो क्या आपकी रूचि उसकी बात में रहती है? कई लोग कहते हैं कि किसी की भलाई के लिये बोला गया झूठ ‘झूठ’ नहीं होता। यह सुनने में तो अच्छा है लेकिन अपने आप में असत्य बात है। कुल मिलाकर हम झूठ पसंद नहीं करते, परंतु जो शाश्वत जीवन का सत्य है उससे अनजान बैठे रहते हैं, उसे खोजते नहीं, और मिथ्या संसार में मन लगाये रहते हैं।

सत्य है क्या ?

हमें विचार करने की आवश्यकता है कि क्या सत्य वो है जो हम सुनना चाहते हैं, या वो है जो हमने बचपन से सीखा है। क्या विज्ञान ही सत्य है या फिर सत्य वो है जो मनुष्य के तत्वज्ञान से सिखाया गया है और या फिर वो जिसकी खोज में ऋषि-मुनि सदियों से जंगलों में जीवन बिताते रहे हैं और फिर भी जब नहीं पाया तो ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगे कि हे ईश्वर हमें असत्य से सत्य, अंधकार से प्रकाश तथा मृत्यु से जीवन की ओर ले चल। संसार की बातें तो एक दिन खत्म हो जायेंगी लेकिन कभी खत्म ना होने वाला सत्य क्या है। कुछ शब्दों में, ईश्वर से जो मैंने सीखा है, मैं आपको वह सच्चाई बताने का प्रयास करता हूँ। Continue Reading

Prayshchit ya pashchatap
प्रायश्चित या पश्चाताप

“तुम जो यह करने जा रहे हो यह ठीक नहीं, यह गलत है, यह झूठ है, यह पाखंड है”।

मनुष्य का विवेक अनेक परिस्थितियों में यह बात उसके अंतर्मन में कहता है। बचपन से हमने सीखा है कि झूठ बोलना पाप है, चोरी करना पाप है, धोखा देना पाप है – परंतु हम में से ऐसा कौन है जिसने कभी झूठ ना बोला हो, कभी भी चोरी ना की हो (चोरी सिर्फ धन की ही नहीं होती – समय की चोरी, कामचोरी, किसी को किये जाने वाले धन्यवाद की चोरी भी चोरी ही है), क्या हम में कोई है जिसने कभी किसी को धोखा न दिया हो। असल में हम सबने पाप किया है और समय बेसमय जब हम कुछ गलत करने चलते हैं तो हमारा अंतर्मन हमें चेताता है। हमारा विवेक ईश्वर का दिया हुआ वरदान है जो हमें पाप अर्थात ईश्वर की मर्ज़ी के विरुद्ध काम करने से रोकने की कोशिश करता है। हम अपने विवेक की नहीं सुनते परंतु अपने चंचल मन की सुनते है, पाप कर बैठते हैं और फिर अपने मन को तसल्ली देते हैं कि यह तो छोटा पाप है – हमने कोई हत्या थोड़ी की है, मैंने किसी की ज़मीन थोड़ी हड़प ली है, मैंने किसी को व्यवसाय में धोखा थोड़ी दिया है, मैंने कहाँ किसी महिला की आबरू लूटी है। मैंने जो किया यह तो बहुत छोटी बात है, सब ही तो करते हैं, मैं कोई निराला थोड़े ही हूँ – मैंने कोई बड़ा पाप तो नहीं किया – मैं तो साधारण सा सरल सा जीवन जीने वाला व्यक्ति हूँ – मैं तो किसी का न बुरा सोचता हूँ ना करता हूँ – अपने काम से काम रखता हूँ, ईश्वर को सुबह शाम याद करता हूँ। यह बात तो सही है कि ‘सभी तो करते हैं’ – परंतु इसके कारण सभी दोषी भी हैं, सभी पापी हैं। सब अगर गलत करते हैं तो ‘गलत’ सही तो नहीं बन जाता। हम कभी-कभी अपने आप को यह भी तसल्ली देते हैं कि जब सभी करते हैं तो देखा जायेगा, जो सबके साथ होगा वो मेरे साथ भी हो जायेगा। Continue Reading

Apka mulya chukaya gaya hai
आपका मूल्य चुकाया गया है

“क्योंकि पाप का मूल्य तो बस मृत्यु ही है जबकि हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनंत जीवन परमेश्वर का वरदान है।”

पुरातन ग्रंथ और आध्यात्मिक धर्मशास्त्र कहते हैं कि पूरी मानव जाति पाप के अंधकार में फंस कर अपने सृष्टिकर्ता के सान्निध्य से दूर हो गई है। हर प्रकार के पाप की क्षमा के लिये शुद्ध तथा निष्कलंक रक्त का बहना ज़रूरी है, क्योंकि लहू में जीवन होता है। कोई पशु पक्षी आदि का लहू नहीं परंतु परम पवित्र परमात्मा (सृष्टिकर्ता परमेश्वर) के लहू बहाने से ही सर्व मानवजाति का पाप क्षमा हो सकता है। Continue Reading

Sabka Malik Ek Hai
सबका मालिक एक है

क्या सच में सब का मालिक एक है?

अगर ऐसा है तो फिर समाज में इतना बैरभाव क्यों? क्या हम सच में मानते हैं कि सबका मालिक एक है या बस कहने के लिये कह देते हैं? दुनिया में बहुत से धर्म हैं। उन सबके रीतिरिवाज अलग अलग हैं और वे सभी इस बात को तूल देते हैं कि उनका ही रास्ता ठीक है। तो क्या बाकी रास्ते गलत हैं? क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं? “हमारे यहाँ तो ऐसा होता है” या “हम तो यह मानते हैं”, यह बात हर जगह धार्मिक विषय पर हो रही बातचीत में सुनाई देती रहती है। क्या ईश्वर भी ऐसे ही बँटा हुआ है?

बहुत से समाजसेवक, गुरु और संत/पैगम्बर इस बात को बताने की कोशिश करते रहे हैं कि समाज में भेदभाव नहीं होना चाहिये, हमें सब धर्मों के लोगों को एक ही दृष्टि से देखना चाहिये, फिर भी भेदभाव भी है और ऊँच-नीच भी। ईश्वर इंसान में भेद नहीं करता और सिखाता है कि सब आपस में प्रेम करें और ईश्वर से भी प्रेम करें, तौभी ऐसा होता नहीं है क्योंकि मनुष्य ईश्वर की नहीं सुनता बल्कि अपने ही तौरतरीकों में खोया रहता है। हरेक धर्म के अपने अपने शास्त्र हैं और अपने अपने तौर-तरीके। सभी ईश्वर को पाना चाहते हैं परंतु फिर भी उसमें अंतर मानते हैं। क्या सच में हिंदू को रचने वाला और ईसाई को रचने वाला ईश्वर अलग अलग है। अगर नहीं, तो फिर हम ईश्वर को बाँटकर क्यों देखते हैं? कुछ धर्मावलंबी अधिक उदार है इसलिये वे कह देते हैं कि ईश्वर एक है परंतु उसके रूप अलग अलग हैं। पर यदि ऐसा है तो अलग अलग धर्मों में उसकी शिक्षायें और उसका स्वरूप हमें एकदम भिन्न क्यों नज़र आता है? विचार करें। Continue Reading

Family who saw a miracle

They say, ” Lord shine, wonder, beautiful miracle, my Lord !!!”

Praise be to our Lord Jesus Christ!

I am glad that you are reading this page. May God bless you as you read on, I have prayed for you. I am joyful that you wish to know more about me, but I will tell you, what God has done for me.

I belong to a Marathi hindu family. I was the first person in my family who was saved. In the month of May in 1998, I set myself on fire due to some personal/emotional reasons (and compelled by some unknown black-magic power). Though I came to realization soon and tried to save myself, yet I was half burnt. I was actually almost dead (100%), but our neighbor (building-mate), who was a believer, prayed for me along with her church members for my life. And I survived. Soon after their prayers, I opened my eyes – I was alive. But we did not believe in Jesus. Continue Reading

A Journey with my Heavenly Father | Seema

I will bless the LORD at all times: his praise shall continually be in my mouth.
[Psalm. 34:1]

On December 14, 2005, I was diagnosed with the breast cancer (third level). The news came as a complete surprise and caught me totally unprepared. It was definitely the worst day of my life but what made it even worse was that I was quite well informed about cancer and therefore had some idea of what to expect. I had mixed emotions; but the thought that immediately crossed my mind was “what have I done to deserve this.” However, when I look back at the events of the last eight or so months, I now understand that GOD wanted to develop His character in my life and to know He loves me. Continue Reading

Finding God in death bed | Pradesh Shrestha

I had never seriously considered the reality of God nor my lack of relationship and responsibility to Him until September 1983 when I lay seriously ill on a hospital bed in Santa Fe, New Mexico. There, in an isolation room in St. Patrick’s Hospital, the doctor told me they had finally diagnosed my illness; the antibiotic I would have to take was known to be potentially lethal for some patients but there was no viable alternative.

I was shocked. I agreed to take the medicine but that night I could not sleep. Where will I go if I die now? For the first time in my life, I took an honest look at myself. And when I did so my conscience was troubled, because, whereas I had always perceived myself to be a good person, now I saw myself as one with something fundamentally wrong within. If there is a Heaven and if there is a Hell, I felt I would end up in Hell. Continue Reading